Saturday, March 24, 2012

वोह मेरी माँ है उसे माँ ही रहने दो

वोह मेरी माँ है उसे माँ ही रहने दो
वोह जीवन की पिच पर अकेली खड़ी थी
निर्बलता, दुखों से घिरी पड़ी थी
चारों तरफ उसके सामाजिक दुश्मन ही दुश्मन थे
जो उसे डराया, धमकाया करते थे.



माँ-पिता ने कभी उसकी मदद नहीं की
भाई-बहन ने कभी उसका साथ नहीं दिया
दो नन्हे बेटों की उस पर जिम्मेदारी थी
वोह अकेले जीवन से लड़ रही थी
लड़ते-लड़ते वोह जीवन हार चुकी थी.

रिश्तेदार उस पर दर्द भरी आह निकालते है
उस पर हँसते है
उसकी रूह को चिढाते है
उसकी मजबूरियां गिनाते है
मेरी कमजोरियां गिना कर उसको ताना देते है.


कोई हारा हुआ खिलाड़ी कहता है उसे
कोई दुखहारी कहता है उसे
कोई मजबूर औरत कहता है उसे
कोई अकेली, आसहाय कहता है उसे.

ए नासमझों दिल के दरवाज़े खोलो
उसे निर्बल कहने वालों ज़रा ध्यान से उसकी बहादुरी को याद करो
ज़िन्दगी हारी नहीं जीती है वोह
सामाजिक बंधन तोड़ के आगे निकली थी वोह
दुःख के पथों पर भी मुस्कुरा के चली थी वोह
मेहरबानी करके याद रखना
यह बात भूल मत जाना
वोह मेरी माँ है उसे माँ ही रहने दो.


- रोमिल

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