Saturday, April 21, 2012

पुत्र रहा माँ को पुकार आँचल में मातृत्व समेटे माँ आ जाओ मेरे द्वार.

ज्योतिहीन गीले नयनों से
पुत्र रहा माँ को पुकार
आँचल में मातृत्व समेटे
माँ आ जाओ मेरे द्वार.


साँसें बोझिल सी लगती हैं
तारों की तरह सपने बिखर चुके है
ताक रहा है नीला अम्बर
सुना है घर का आँगन
चाँद भी नज़र न आया
कृष्ण को यशोदा बिना कुछ न भाया
पुत्र रहा माँ को पुकार
आँचल में मातृत्व समेटे
माँ आ जाओ मेरे द्वार.
 

एक फूल ही अर्पित कर दें
स्मृतियों के कोमल स्वर के साथ
युगों - युगों की यह व्याकुलता
कब मिटेगी.
अलौकिक शान्ति कब मिलेगी
पुत्र रहा माँ को पुकार
आँचल में मातृत्व समेटे
माँ आ जाओ मेरे द्वार.

- रोमिल

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