मुझसे कतरा के निकल जाते हैं
खुदा तेरे फ़रिश्ते गरीबों का घर नहीं जानते हैं
पास आकर मेरा दुःख बंटाने वाले
अभी मेरे ज़ख्मो पर मरहम लगाना नहीं जानते हैं
और
उसको लिखकर कहा निकलती है दिल की भड़ास
जिनको आता है तमाचा जड़ने का हुनर वोह कागज़ी-शतरंज नहीं जानते हैं
और
टूटी-फूटी मिट्टी की चार-दीवारी में महकती है माँ की खुशबू
दौलत के रंग से दीवार रंगने वालें नहीं जानते हैं।
- रोमिल
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