Friday, November 19, 2010

देखने में निशानी है उसकी मगर किसी ज़ख्म से कम भी नहीं...

साथ छूते मगर रिश्ता टूटा ही नहीं
उसने मुझे भूला दिया लेकिन मैंने उससे भुलाया ही नहीं...
*
साथ चले थे क़दम दर क़दम कोई मंजिल थी नहीं
उससे दूर हुए उसके साया से नहीं...
*
किससे कहे अपने बर्बाद-ए-ज़िन्दगी की कहानी   
वैसे तो हजारों है अपने, मगर कोइए अपना भी नहीं...
*
उसने मुझे छुआ था किसी रोज़ खवाब में
देखने में निशानी है उसकी मगर किसी ज़ख्म से कम भी नहीं...
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