साथ छूते मगर रिश्ता टूटा ही नहीं
उसने मुझे भूला दिया लेकिन मैंने उससे भुलाया ही नहीं...
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साथ चले थे क़दम दर क़दम कोई मंजिल थी नहीं
उससे दूर हुए उसके साया से नहीं...
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किससे कहे अपने बर्बाद-ए-ज़िन्दगी की कहानी
वैसे तो हजारों है अपने, मगर कोइए अपना भी नहीं...
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उसने मुझे छुआ था किसी रोज़ खवाब में
देखने में निशानी है उसकी मगर किसी ज़ख्म से कम भी नहीं...
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