Saturday, November 27, 2010

कॉफी की याद न आई हो...

७५ साल ज़िन्दगी के.... तुम्हारे साथ छु मंतर हो गए...
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इतने साल हो गए
अपने सर के बाल भी कम हो गए
मगर ऐसी कोई शाम नहीं ढली
जब तुम्हारे हाथ से बनी
कॉफी की याद न आई हो...
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मेरे आने का पता तुम्हे न जाने कैसे चल जाता था
जैसे ही बैग रखूँ
"कॉफी रेड्डी है हुजुर ए आला"
तुम्हारा यह खूबसूरत शब्द मेरे कानों तक पहुँच जाता था...
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न्यूज़ पेपर, मैगजीन तुम मुझे पढ़ने नहीं देती थी
बस मेरे ही दिनभर की बातें तुम मुझसे पूछा करती थी...
सच कहूँ तो...
तुम्हारे हाथो के बने पकौड़ों,
इमली की चटनी के साथ
लाजवाब होते थे...
पता नहीं तुम कैसे ५ मिनट में बना लाती थी... 
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वो शाम भुलाये नही भूले जाती है
ज़िन्दगी के ७५ साल में भी याद आती है
तेरे हाथों से बनी कॉफी की याद आती है...

#रोमिल

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