नाज़... मैं चाहता हूँ Ice Skating करना... दोनों हाथ खोल कर... हवा से बातें करना चाहता हूँ... कभी तुम्हारा हाथ पकड़ कर, एक पैर हवा में करके घुमना चाहता हूँ...
कभी तुम्हारा हाथ पकड़ बर्फ की वादियों से गुज़रते हुए... तोह कभी बर्फ के साथ हम तुम खेलते हुए...
और वोह वाला गाना...
"ओ साथी चल... हवा के साथ-साथ, घटा के संग-संग...ओ साथी चल"
काश नाज़.. तुम जन्नत में न होती... मेरी ज़िन्दगी में भी Ice Skating की भी संभावना होती...
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