Friday, December 16, 2011

गृहस्थ

गृहस्थ

१. यह घर हमारा घर नहीं भगवान का निवास स्थान है, इस भाव से रहे.
२. गृहस्थ अपने घर का मालिक नहीं मुनीम है, ऐसा समझे. 
३. गृहस्थ का घर भगवान का मंदिर हो जाये - इस प्रकार आचरणपूर्वक घर में निवास करे.
४. जिस घर में साधु-संतो, अतिथि एवं गरीब-असहाए का सम्मान होता है, वह घर स्वर्ग के सामान होता है. 
५. प्रेम ही घर की प्रतिष्ठा है.
६. सुव्यवस्था ही घर की शोभा है.
७. सुसमाधान ही घर का सुख है.
८. घर ही सबसे महत्वपूर्ण आश्रम है.
९. घर में पूरे परिवार को एक साथ बैठकर भगवान का कीर्तन करने से परमानन्द प्राप्त होता है.
१०. पति-पत्नी का सम्बन्ध केवल भोग-विलास के लिए नहीं बल्कि प्रेम, घर निर्माण, घर सुख, त्याग के लिए है.

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