आज कल शनि और साईं का समय चल रहा है...
जो रहे हमेशा रूपया, सोने से दूर,
उनको ही सोने का मुकुट पहनाया जा रहा है
भक्ति का नया खेल चल रहा है...
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कही मूर्तिया दूध पीने लगती है...
कही पत्थरों से आंसू बह रहा है...
भक्ति का नया खेल चल रहा है...
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कही पेड़ के नीचे पड़ी मूर्तियों का अपमान हो रहा हैं
कही प्रवचन देने वालों को भगवान् कहा जा रहा हैं
भक्ति का नया खेल चल रहा है...
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कही कोइए दुर्गा, हनुमान का रूप लेकर नाच रहा है
कही पेड़ पर मुरादों का धागा बाँधा जा रहा है
भक्ति का नया खेल चल रहा है...
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इंसान जो कही मंदिर,
कही मस्जिद के सामने भीख मांगता था
आज भी बेचारा वही काम कर रहा है...
वोह रब अन्दर बैठा प्रसाद पर प्रसाद भोग लगा रहा है..
भक्ति का नया खेल चल रहा है...
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