Monday, September 12, 2011

नाज़... मैं पर्वतों के बीच जाना चाहता हूँ...

नाज़... मैं पर्वतों के बीच जाना चाहता हूँ... बहते हुए झरने में नहाना चाहता हूँ... boating करना चाहता हूँ... पर्वतों पर खड़ा होकर जोर-जोर से तेरा नाम पुकारना चाहता हूँ... वहां पर्वत पर तुम्हारा नाम लिखकर आना चाहता हूँ... ढलती हुई शाम को देखना चाहता हूँ... उगते हुए सूरज को देखना चाहता हूँ... बहते हुए पानी की आवाज़ सुनना चाहता हूँ...

काश नाज़.. तुम जन्नत में न होती... मेरी ज़िन्दगी में भी boating की संभावना होती...

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