Tuesday, February 7, 2012

Shanti keejiye prabhu tribhuvan mein - शांति कीजिये प्रभु त्रिभुवन में

Shanti keejiye prabhu tribhuvan mein,
Jal mein thal mein aur gagan mein,
Antriksh mein agni pavan mein,
Sakal jagat ke jad chetan mein

Brahman ke updesh vachan mein,
Kshtriya ke dwara hove ran mein,
Vaishya jano ke hove dhan mein,
aur Shudra ke hi charan mein.

Shanti rashtr nirvan srajan mein,
Nagar gram mein aur bhawan mein,
Jeev matra ke tan mein mann mein,
aur Jagat ke hi karn-karn mein...

Shanti keejiye prabhu tribhuvan mein...
***

शांति कीजिये प्रभु त्रिभुवन में

जल में थल में और गगन में
अन्तरिक्ष में अग्नि-पवन में
सकल जगत के जड़ चेतन में.
ब्रह्मण के उपदेश वचन में,
क्षत्रिय के द्वारा होवे रण में,
वैश्य जनों के होवे धन में,
और शुद्र के ही चरण में.

शांति राष्ट्र निर्माण सृजन में,
नगर ग्राम में और भवन में,
जीव मात्र के तन में मन में,
और जगत के हर कण-कण में,

शांति कीजिये प्रभु त्रिभुवन में...
***
हे सबके स्वामी परमात्मा! सबको जीवन में शांति प्रदान करना.
सबको रोगरहित स्वास्थ देना.
सबको असत्य के हटकर सत्य के मार्ग पर चलने की शक्ति देना.
सबको विद्या, ज्ञान, धन देना
माँ का हमेशा, हर पल ख्याल रखना
मेरी बुराइयों को दूर करना, मुझको दोषरहित करना.  

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