Thursday, July 10, 2014

कर्ज़

आसमां के नीचे, ज़मीं के ऊपर रहने का कुछ कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा
अगर वोह साँसें देकर, बंदगी मांगता है, तो क्या बुरा करता है?
इन साँसों का कुछ कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा।

उसकी कड़वी बातें मुझे रातभर सोने नहीं देती
यह ज़लालत भरी ज़िन्दगी सांसें लेने नहीं देती
रोने से क्या हासिल होगा रोमिल?
चंद मुठ्ठी भर ढेलियों का कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा।

 इंसाफ चाहिए मुझे!
अपनी हर जलालत का, अपनी हर बेज्जती का
देख नाज़.… इस बार, दोस्ती का कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा।

#रोमिल

Wednesday, July 9, 2014

ruksat karo to duaoon ke saath karo

ruksat karo to duaon ke saath karo
itna to ehsaan mujhpar deewan-e-yaar karo.

vaada hai... ek ruksat hote insaan ka vaada hai...
nibhaunga jarur...
itna to aitbaar-e-yaar karo.

purani pehchaan hai, zaara muskura bhi do
chaho to gale se lagkar shikwe hazaar karo.

sunadi usne do baatein,
sunane do
aaj uska waqt hai
kal hum sunayenge
hamara bhi waqt aayega
jaagkar ab neendon ko to na dushwaar karo.

#Romil

रुख़सत करो तो दुआओं के साथ करो 
इतना तो एहसान मुझपर दीवान-ए-यार करो.

वादा है... एक रुख़सत होते इंसान का वादा है... 
निभाऊंगा जरूर... 
इतना तो ऐतबार-ए-यार करो. 

पुरानी पहचान है, जरा मुस्कुरा भी दो 
चाहो तो गले से लगकर शिकवे हजार करो.

सुना दी उसने दो बातें, 
सुनाने दो 
आज उसका वक्त है 
कल हम सुनाएंगे 
हमारा भी वक्त आएगा 
जागकर अब नींदों को तो ना दुश्वार करो. 

#रोमिल

ए मौत मेरा तुझसे वादा है.…

ए मौत मेरा तुझसे वादा है
तू जब भी आएगी, मुझे मुस्कुराता ही पाएगी
गुदगुदाता हुआ, उड़ती-फिरती तितलियों के तरह ही पाएगी
बाहें खोलकर मैं तुझे अपनी आग़ोश में लेने की गुज़ारिश करूँगा
मिट्टी में मिल जाने की आरज़ू रखूँगा
ज़िन्दगी के सारे रंग ख़्वाब बन आँखों में उतर चलेंगे
और 
मैं, 
सफ़ेद रंग ओढ़कर गुज़रे हुए मौसम की तरह गुज़र जायूँगा।       

ए मौत मेरा तुझसे वादा है.… 

#रोमिल

आज जमकर रोया हूँ

आज जमकर रोया हूँ
नाज़ क़सम, फ़ूट-फ़ूटकर रोया हूँ
बरसात की तरह बस बरसती जा रही थी आँखें
सिसकियों में बस खो सी गई थी आवाज़ें।

आज़ बचपन का रोना याद आ गया...
बहती हुई नाक को शर्ट की आस्तीनों से पोछना याद आ गया.…

आज की बेईज़्ज़ती याद रहेगी 
मैं कुछ नहीं बोलूंगा, न जवाब दूँगा
मेरी नाज़ देगी
तुम्हारे हर एक इ-मेल का, तुम्हारे हर एक सवाल का...

नाज़ कसम...

#रोमिल

Tuesday, July 8, 2014

Zindagi Gulzar Hai - Kashaf











आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

किताबों की ढ़ेर पर बैठकर
पन्ने पलटते हुए
यह कहता रहता
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा
चाहे किसी भी पन्ने पे छुपी हो
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

अफ़सरी-नौकरशाही  
दौलत-शौहरत
रूपया-कोठियां
अगल-बगल नाचती हुई यह गाड़ियाँ
क्या यह है तरक़्क़ी?

झूठ बोलती-मतलबी
खुद ही में खोई हुई-खुद ही में झूमती 
रुपयों के पीछे भागती-नाचती 
डरी हुई-सहमी हुई
एक दूसरे का गला घोटती हुई  
संस्कारों की लाशों पे चढ़ी हुई
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

आम की चौपाल लगाये हुए ज़माना हो गया
किसी अंजान की होंठों पे ख़ुशी लाये एक अरसा बीत गया
अब तो रात में नींद भी चैन से आती नहीं
भोर में पैरों तले पेड़ के पत्तों की आवाज़ सुनाई देती नहीं
सब दिल की ख़ुशी के पल खो चुके है  
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

बीमार हो तो पड़ोसी भी हाल पूछता नहीं
अब कोई छतों पे मर्तबानों में आचार रखता नहीं
सच्ची बात किसी के लबों से सुने हुए ज़माना हो चला है 
ऑफिस, घर की परेशानियों में रोज शराब पीना बहाना हो चला है
हमदर्दी के पल खो चुके है  
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

पन्ने पलटते-पलटते
किताबों का ढ़ेर खत्म हो गया
पर मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ न सका 
न जाने किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

#रोमिल

Monday, July 7, 2014

ज़िद

दोनों अपनी-अपनी ज़िद पर अड़े हुए है...

वोह बुढ़िया कभी उठकर अंदर नहीं जाती
सुबह से लेकर शाम उसी मंदिर की सीढ़ियों पर ही है बिताती
वोह पत्थर का खुदा कभी उठकर बाहर नहीं आता
ना कभी उसका हाल पूछता
ना कभी उसको समझाता।

ना जाने यह कैसी ज़िद है?

चौखट पर कोई बैठा है
और
बोलचाल भी नहीं है।

रूठी हुई, मुँह फुलाएं हुए
नाराज़ सी, खामोश सी, उदास सी
उस बुढ़िया को जब मैं देखता हूँ
यह समझ नहीं पाता 
कि जिस खुदा ने दया, उपकार, झुकना सिखाया
वोह खुदा, खुद क्यों नहीं ज़िद छोड़कर मंदिर के बाहर आ जाता
उस बुढ़िया को अपने हाथों से उठाकर,
कंधों के सहारे,
मंदिर के अंदर ले जाता
अपने पास बैठाता
उसका हाल पूछता
उसको ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा सिखाता। 

#रोमिल