ALL POSTS DEDICATED TO MY RAB NAAZ... ONLY NAAZ... NAAZ KE QAATIL KO DEKHA NAHI KABHI ROMIL, LEKIN DIL YEH KEHTA HAIN KI WOH RAB HAIN... WOH RAB HAIN...WRITTEN BY ROMIL. COPYRIGHT RESERVED TO HTTP://WWW.TERELIYE-SUNNY-RAJ.BLOGSPOT.COM AND WRITER!
Tuesday, July 8, 2014
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
किताबों की ढ़ेर पर बैठकर
पन्ने पलटते हुए
यह कहता रहता
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा
चाहे किसी भी पन्ने पे छुपी हो
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
अफ़सरी-नौकरशाही
दौलत-शौहरत
रूपया-कोठियां
अगल-बगल नाचती हुई यह गाड़ियाँ
क्या यह है तरक़्क़ी?
झूठ बोलती-मतलबी
खुद ही में खोई हुई-खुद ही में झूमती
रुपयों के पीछे भागती-नाचती
डरी हुई-सहमी हुई
एक दूसरे का गला घोटती हुई
संस्कारों की लाशों पे चढ़ी हुई
क्या यह है तरक़्क़ी?
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
आम की चौपाल लगाये हुए ज़माना हो गया
किसी अंजान की होंठों पे ख़ुशी लाये एक अरसा बीत गया
अब तो रात में नींद भी चैन से आती नहीं
भोर में पैरों तले पेड़ के पत्तों की आवाज़ सुनाई देती नहीं
सब दिल की ख़ुशी के पल खो चुके है
क्या यह है तरक़्क़ी?
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
बीमार हो तो पड़ोसी भी हाल पूछता नहीं
अब कोई छतों पे मर्तबानों में आचार रखता नहीं
सच्ची बात किसी के लबों से सुने हुए ज़माना हो चला है
ऑफिस, घर की परेशानियों में रोज शराब पीना बहाना हो चला है
हमदर्दी के पल खो चुके है
क्या यह है तरक़्क़ी?
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
पन्ने पलटते-पलटते
किताबों का ढ़ेर खत्म हो गया
पर मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ न सका
न जाने किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
#रोमिल
पन्ने पलटते हुए
यह कहता रहता
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा
चाहे किसी भी पन्ने पे छुपी हो
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
अफ़सरी-नौकरशाही
दौलत-शौहरत
रूपया-कोठियां
अगल-बगल नाचती हुई यह गाड़ियाँ
क्या यह है तरक़्क़ी?
झूठ बोलती-मतलबी
खुद ही में खोई हुई-खुद ही में झूमती
रुपयों के पीछे भागती-नाचती
डरी हुई-सहमी हुई
एक दूसरे का गला घोटती हुई
संस्कारों की लाशों पे चढ़ी हुई
क्या यह है तरक़्क़ी?
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
आम की चौपाल लगाये हुए ज़माना हो गया
किसी अंजान की होंठों पे ख़ुशी लाये एक अरसा बीत गया
अब तो रात में नींद भी चैन से आती नहीं
भोर में पैरों तले पेड़ के पत्तों की आवाज़ सुनाई देती नहीं
सब दिल की ख़ुशी के पल खो चुके है
क्या यह है तरक़्क़ी?
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
बीमार हो तो पड़ोसी भी हाल पूछता नहीं
अब कोई छतों पे मर्तबानों में आचार रखता नहीं
सच्ची बात किसी के लबों से सुने हुए ज़माना हो चला है
ऑफिस, घर की परेशानियों में रोज शराब पीना बहाना हो चला है
हमदर्दी के पल खो चुके है
क्या यह है तरक़्क़ी?
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।
आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
पन्ने पलटते-पलटते
किताबों का ढ़ेर खत्म हो गया
पर मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ न सका
न जाने किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?
#रोमिल
Monday, July 7, 2014
ज़िद
दोनों अपनी-अपनी ज़िद पर अड़े हुए है...
वोह बुढ़िया कभी उठकर अंदर नहीं जाती
सुबह से लेकर शाम उसी मंदिर की सीढ़ियों पर ही है बिताती
वोह पत्थर का खुदा कभी उठकर बाहर नहीं आता
ना कभी उसका हाल पूछता
ना कभी उसको समझाता।
ना जाने यह कैसी ज़िद है?
चौखट पर कोई बैठा है
और
बोलचाल भी नहीं है।
रूठी हुई, मुँह फुलाएं हुए
नाराज़ सी, खामोश सी, उदास सी
उस बुढ़िया को जब मैं देखता हूँ
यह समझ नहीं पाता
कि जिस खुदा ने दया, उपकार, झुकना सिखाया
वोह खुदा, खुद क्यों नहीं ज़िद छोड़कर मंदिर के बाहर आ जाता
उस बुढ़िया को अपने हाथों से उठाकर,
कंधों के सहारे,
मंदिर के अंदर ले जाता
अपने पास बैठाता
उसका हाल पूछता
उसको ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा सिखाता।
#रोमिल
aisa lagta hai jaise kisi ne badal ke kaan umed diye ho
aisa lagta hai jaise kisi ne badal ke kaan umed diye ho
aaj jam kar barsa hai woh mere shehar mein...
#Romil
ऐसा लगता है जैसे किसी ने बादल के कान उमेड़ दिये हो
आज जमकर बरसा हैं वो मेरे शहर में...
#रोमिल
Sunday, July 6, 2014
ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon
ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon
ya adhure khawabon ko poora karne ka farz nibha raha hoon
saansein chubhati hai rooh mein
barson se padi kitabon par se dhool udha raha hoon
aisa lag raha hai ki zindagi ka bhoj utha raha hoon
ya adhure khawabon ko poora karne ka farz nibha raha hoon
saansein chubhati hai rooh mein
barson se padi kitabon par se dhool udha raha hoon
aisa lag raha hai ki zindagi ka bhoj utha raha hoon
reh-reh kar logon ki katati baatein yaad aati hai
chand sikkon ki dheliyon ke beech dabi hui majbooriyan satati hai
aawazein bhi aansooyon ke beech badal si jaati hai
jism se nikal kar saansein ab rooh hi ho jaana chahti hai
zameen ko chhod kar aasmano mein gudgudana chahta hoon.
ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon
ya adhure khawabon ko poora karne ka farz nibha raha hoon.
#Romil
chand sikkon ki dheliyon ke beech dabi hui majbooriyan satati hai
aawazein bhi aansooyon ke beech badal si jaati hai
jism se nikal kar saansein ab rooh hi ho jaana chahti hai
zameen ko chhod kar aasmano mein gudgudana chahta hoon.
ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon
ya adhure khawabon ko poora karne ka farz nibha raha hoon.
#Romil
अब यह ही समझो जीने की रस्म निभा रहा हूं
या अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का फर्ज निभा रहा हूं
सांसे चुभती है रूह में
बरसों से पड़ी किताबों पर से धूल उड़ा रहा हूं
ऐसा लग रहा है कि जिंदगी का बोझ उठा रहा हूं.
रह-रह कर लोगों की काटती बातें याद आती है
चंद सिक्कों की ढेलियों के बीच दबी हुई मजबूरियां सताती हैं
आवाज़ें भी आंसुओं के बीच बदल सी जाती है
जिस्म से निकलकर साँसें अब रूह हो जाना चाहती है
जमीन को छोड़कर आसमानों में गुदगुदाना चाहता हूं.
अब यह ही समझो जीने की रस्म निभा रहा हूं
या अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का फर्ज निभा रहा हूं.
#रोमिल
kabhi-kabhi
kabhi-kabhi jo sneh, dulaar, mamta hamari nazarein dhund rahi hoti hai
woh humko ajnabiyon mein mil jati hai
khoon ke rishton mein nahi.
par majbooriyaan to dekho
hum ajnabiyon se yeh izhaar kar hi nahi paate...
कभी-कभी जो स्नेह, दुलार, ममता हमारी नजरें ढूंढ रही होती है वो हमको अजनबियों में मिल जाती है, खून के रिश्तो में नहीं.
पर मजबूरियां तो देखो
हम अजनबियों से यह इज़हार कर ही नहीं पाते...
*****
kabhi-kabhi zindagi mein aaisa kuch ho jata hai ki
dil chahta hai ki abhi marr jayun...
behzati... bardasht nahi hoti mujhse...
dil chahta hai ki abhi marr jayun...
fir tham sa jata hoon yeh soch kar
ki main marr gaya to meri maa haar jayegi...
कभी-कभी जिंदगी में ऐसा कुछ हो जाता है कि
दिल चाहता है कि अभी मर जाऊं...
बेइज्जती... बर्दाश्त नहीं होती मुझसे...
दिल चाहता है कि अभी मर जाऊं...
फिर थम सा जाता हूं यह सोच कर कि मैं मर गया तो मेरी मां हार जाएगी...
*****
kabhi-kabhi sochata hoon
kya yahi dunia khuda banana chahta tha
isi dunia par woh naaz, woh fakr karna chahta tha.
matlabhi
dhokebaaz,
laalchi... rupiyon ke gulam,
farebi
inhi sab ko apna baccha kehna chahta tha
kya yahi dunia khuda banana chahta tha...
har taraf ek daud si lagi hui hai
tarakki-shan-o-shauqat ke peeche dunia bas bhaag rahi hai
lashon par bhi rupiyon ki mohar si lagi hui hai
inhi sab ko woh zindagi kehna chahta tha
kya yahi dunia khuda banana chahta tha...
#Romil
कभी-कभी सोचता हूं
क्या यही दुनिया खुदा बनाना चाहता था
इसी दुनिया पर वो नाज़, वो फ़क्र करना चाहता था.
मतलबी,
धोखेबाज,
लालची... रुपियों के ग़ुलाम,
फ़रेबी
इन्हीं सबको अपना बच्चा कहना चाहता था
क्या यही दुनिया खुदा बनाना चाहता था...
हर तरफ एक दौड़ सी लगी हुई है
तरक्की शान-ओ-शौकत के पीछे दुनिया बस भाग रही है
लाशों पर भी रुपयों की मोहर सी लगी हुई है
इन्हीं सबको वो जिंदगी कहना चाहता था
क्या यही दुनिया खुदा बनाना चाहता था...
#रोमिल
Friday, July 4, 2014
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon
ziddi hoon
ya fir bewafa hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
rasmo ki - rivajon ki
ya fir in samajhon ki
khokhali soch mein jakadi hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
ziddi hoon
ya fir bewafa hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
rasmo ki - rivajon ki
ya fir in samajhon ki
khokhali soch mein jakadi hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
mehalon mein qaid hoon
ishq ki galiyon se door hoon
yaadon mein lipati hui
darri-sehmi hoon
waqt ki zanzeron mein giraftar hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
maine use chaha
apna diwana banaya
fir chhod diya
jo khilauna sabse jyada pasand tha mujhe
wo hi be-rehmi se toodh diya
chaalak ya fir bewakuf hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
ishq ki galiyon se door hoon
yaadon mein lipati hui
darri-sehmi hoon
waqt ki zanzeron mein giraftar hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
maine use chaha
apna diwana banaya
fir chhod diya
jo khilauna sabse jyada pasand tha mujhe
wo hi be-rehmi se toodh diya
chaalak ya fir bewakuf hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
woh roya
main hasti rahi
woh chillaya
main khud mein khoi rahi
khudgarj ya fir be-dard hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
#Romil
main hasti rahi
woh chillaya
main khud mein khoi rahi
khudgarj ya fir be-dard hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.
#Romil
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं
जिद्दी हूं
या फिर बेवफा हूँ
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.
रस्मो की-रिवाजों की
या फिर इन समाजों की
खोखली सोच में जकड़ी हूं
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.
महलों में कैद हूं
इश्क़ की गलियों से दूर हूं
यादों में लिपटी हुई
डरी-सहमी हूँ
वक्त की जंजीरों में गिरफ्तार हूं
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूँ.
मैंने उसे चाहा
अपना दीवाना बनाया
फिर छोड़ दिया
जो खिलौना सबसे ज्यादा पसंद था
वो ही बेरहमी से तोड़ दिया
चालाक हूं या फिर बेवकूफ हूं
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.
वो रोया
मैं हस्ती रही
वो चिल्लाया
मैं खुद में खोई रही
खुदगर्ज या फिर बे-दर्द हूं
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.
#रोमिल
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